अवलोकन : इस आर्टिकल के ज़रिये हम आपको मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी (Mirza Ghalib Shayari in Hindi in 2 Lines) उपलब्ध कराएँगे जिनको आप किसी भी सोशल नेटवर्किंग पर आसानी से शेयर कर सकते हैं.
‘जो बातें इंसान 1000 शब्दों में नहीं कर पाते, वो बातें केवल 2 वाक्यों की शायरी बयाँ कर जाती है.’ ये बात बिलकुल सत्य है. शायरी कुछ ऐसे वाक्यों का समूह होती है जो सीधा अपने निशाने पर लगती है. इनको छोटी कविता का दर्जा भी दिया जा सकता है.
इस संसार में कई महान शायरऔर कवी पैदा हुए, जो उर्दू और हिंदी की जुगलबंदी से हमें कुछ महान शायरियां दे गए. अगर हम ऐसे महान व्यक्तियों की एक सूची बनाएं, तो वह सूची बहुत लम्बी हो जाएगी. और इसी सूची में एक नाम ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ का भी आता है.
मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवन परिचय
मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को कला महल आगरा में हुआ था. इनके पिता का नाम मिर्ज़ा अब्दुल्लाह बैग खान, और माता का नाम इज़्ज़त-उत-निसा बेगम था. जिस जगह पर इनका जन्म हुआ था, उस जगह पर आज इंद्रभान गर्ल्स इण्टर कॉलेज है. ये ऐबक तुर्क खानदान के वंशज थे. ऐबक तुर्क खानदान समरकंद (उज़्बेकिस्तान) का एक मशहूर घराना था. इनके दादा जी, क़ोक़न बैग खान, समरकंद से भारत आये और भारत में ही बस गए.
ग़ालिब का बचपन
ग़ालिब के पिता जी लखनऊ के नवाब थे. ये बाद में हैदराबाद के निज़ाम भी हुए. इन्होने अपने पिता को अलवर के युद्ध (1803) में खो दिया था. पिता की मृत्यु के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब के चाचा ‘मिर्ज़ा नसरुल्लाह बैग खान’ ने उनकी देखभाल की. ग़ालिब ने पहली भाषा उर्दू सीखी. इसके अलावा तुर्की और पारसी भाषा का भी प्रयोग भी इनके घर पे किया जाता था. अपने बचपन के दिनों में मिर्ज़ा पारसी और अरबी भाषा सीखा करते थे.
एक किस्सा यह भी है की एक बार ग़ालिब के घर ईरान से एक मेहमान आया था. वह मेहमान उनके घर कई वर्षों तक रुका. ग़ालिब उस वक़्त अपने किशोरावस्था में थे. जल्द ही ग़ालिब ने उस मेहमान को अपना दोस्त बना लिया और उससे उन्होंने पारसी, अरबी और दर्शनशास्त्र की विद्या ली.
जब ग़ालिब 13 साल के हुए तो उनका निकाह उमराओ बेगम से हुआ. उमराओ नवाब इलाही बक्श की बेटी और फ़िरोज़पुर झिरका के नवाब की भतीजी थी. हालाँकि कहने को तो सब कुछ था, मगर इतना सब कुछ होने के बावजूद भी ग़ालिब का वैवाहिक जीवन ख़ुशी से नहीं बीता. इस बात का ज़िक्र ग़ालिब ने कई शायरी और कविताओं में किया है.
ग़ालिब का दुःख तू क्या समझेगा ऐ नादाँ………
मिर्ज़ा ग़ालिब की सात संताने हुई लेकिन बदकिस्मती से सारी संताने मौत को प्यारी हो गयीं. इन हादसों से हुए दिल पर ज़ख्मों का अंदाज़ा उनके ग़ज़लों से लगाया जा सकता है. ग़ालिब की कुछ आदतें जैसे जुआ खेलना, नियम तोडना, शराब का सेवन करना, आदि बहुत बेकार थीं. और कई बार उनको इन आदतों की वजह से तकलीफों का सामना भी करना पड़ा.
एक बार, जब लोगों ने ग़ालिब के सामने शेख सहबै की तारीफ़ कर दी, तो उन्होंने फ़ौरन इसपर जवाब दिया की शेख अच्छे शायर नहीं हो सकते. क्यूंकि न तो वो कभी जेल गए, न उन्होंने कभी कोई नियम तोडा और न ही कभी अपनी ज़िन्दगी में जुआ खेला.
ग़ालिब को अपने ग़ज़ल और बेहतरीन कामों के लिए कई नाम भी मिले जैसे, ‘दबीर-उल-मुल्क’, ‘नज़्म-उद-दौला’ और ‘मिर्ज़ा नोशा’. इन्ही नामों को हासिल करने के बाद ग़ालिब को ‘मिर्ज़ा’ की उपाधि भी दी गयी.
मिर्ज़ा ग़ालिब की अनमोल और बेहतरीन ग़ज़ल और शायरियां ही हैं जिनकी वजह से वे आज भी जाने जाते हैं. आज भी अक्सर जब भी लोगों को शायरी का प्रयोग करना होता है, तो वे ग़ालिब की शायरी को की ही शायरी को प्रयोग करने के लिए पसंद करते हैं. आज इस पोस्ट में हम आपके लिए मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ सुन्दर पंक्तियाँ (Mirza Ghalib Shayari in Hindi in 2 Lines) लाये हैं, जिन्हे आप किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आसानी से शेयर कर सकते हैं. तो अब बिना ज़्यादा वक़्त गवाए, ले चलते हैं आपको सीधा शायरी की ओर.
Mirza Ghalib Shayari in Hindi
बस-कि दुश्वार है हर कर्म का आसाँ होना
इंसान को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।
नसों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर खून क्या है !!
नींद उस की है दिमाग़ उस का है शमा उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पे परेशाँ हो गईं
दिल-ए-नादां, तुझे ये हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यारी है,
आँखों को रख के ताक़ पर देखा करे कोई !!
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर इक ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी ही कम निकले
फ़िक्र-ए-दुनिया में सिर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये सब वबाल कहाँ !!
Mirza Ghalib ki Shayari
इश्क़ में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पर दम निकले
मेहरबां होके बुलाओ मुझे, चाहे जिस भी वक्त
मैं गुज़रा वक़्त नहीं हूं, कि फिर आ भी न सकूं
इन आबलों से पाँव से घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है रास्ते को पुर-ख़ार देख कर !!
तेरी कसमों पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर हमें एतिबार होता
ये भी देखें:
- Funny Shayari On Friendship in Hindi with Images HD
- Honesty Images, Pictures With Hindi Quotes
- Best Boys DP for Facebook HD Download
- 40+ Mausam Images with Shayari for Whatsapp in HD
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन सोचते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी ये फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
इश्क़ में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर भी अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !!
Shayari of Ghalib on ishq
हैं और भी संसार में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयान और
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल ही नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल ही नहीं रहा
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जुबां
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ करे हुए !!

दिल भी या-खुदा कई दिए होते
इस दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरे आगे !!
अगर और जीते रहते तो यही इंतिज़ार होता
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे अपने जवाब में !!
तो नींद क्यूँ रात भर नहीं आती
Ghalib ki Shayari on Life
वो समझते हैं कि शायद बीमार का हाल अच्छा है
वो दिन गए जब अपना दिल से जिगर जुदा था
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए ही क्यूँ
डुबोया मुझकोउन्होंने ने न होता मैं तो क्या होता

ठोकरें खा के ही अक्सर बंदे को अक़्ल आती है !!
मुझको तक कब उन के बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
कहीं साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में
आह को चाहिए एक उम्र असर होते तक
कौन भला जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को भला क्या कम है
हुए तुम यार जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
Mirza Ghalib Shayari in Hindi
गालिबे-खस्ता के बगैर भला कौन-से काम बंद हैं
रोइए जोर-जोर क्यों, कीजिए हाय-हाय क्यों
कोई मेरे मन से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो दिल के पार होता
न लुटता दिन को तो मैं रात को यूँ बे-ख़बर सोता
रहा खटका ना ही चोरी की दुआ देता हूँ रहज़न को
तुम सलामत रहो हज़ारों बरस
हर एक बरस के हों दिन पचास हजार
ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उमर भर,
आने का अहद कर गए आए जो ख्यालों में !!
रोने से और आंसू में बे-बाक हो गए
धोए गए हम इतने कि फिर पाक हो गए
निकलना ख़ुल्द से आदम का हम सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले
महव-ए-चश्म-ए-रंगीं-ए-जवाब हुए हैं हम जबसे,
शौक़-ए-दीदार हुआ जाता है हर इक सवाल का रंग !!
Ghazals of Ghalib
जिन ज़ख्मों की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की,
लिख दीजियो या रब उसे मुकद्दर में अदू की !!
मरते हैं ख्यालों में मरने के
मौत आती है पर आती ही नहीं
रंज से खूंगर हुआ इंसान तो मिट जाता है गम
मुश्किलें मुझपे पड़ीं इतनी कि अब अरसा हो गईं
हर रंज में ख़ुशी की थी उम्मीदें बरक़रार,
तुम मुस्कुरा दिए और मेरे ज़माने बन गये !!
मत सुनो गर बुरा कहे कोई,
मत कहो गर बुरा करे कोई !!
तुम रोक लो गर ग़लत चले कोई,
और बख़्श दो गर ख़ता करे कोई !!
ज़िंदगी में तो वो हमें महफ़िल से उठा देते थे
देखूँ अब मर गए हैं पर कौन उठाता है मुझे
पूछते हैं वो कि ये ‘ग़ालिब’ कौन है
कोई बताओ कि हम बताएं क्या
तुम अपने गिले-शिकवों की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे जिगर से
कि उस में आग दबी है..
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ मेरे रब
लड़ते भी हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
अपनी गली में हम को
न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को
भला क्यूँ तेरा घर मिले
रहिए अब ऐसी जगह की चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-जुबां कोई न हो
हम को तो मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
मन को ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
Best Mirza Ghalib Shayari in Hindi
छोड़ा न रश्क ने कि फिर तेरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किस तरफ मैं
कुछ लम्हे जो हमने ख़र्च किए थे मिले नही,
तो सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया !!
भीगी हुई सी रात में जब यादें जल उठी,
बादल सा एक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !!
अब तो अगले मौसमों में यही काम आएगा,
कुछ रोज़ दर्द ओढ़ के सिरहाने रख लिया !!
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसको
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसको
वो राहें जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
उन राहों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
अफसानों को आधा छोड़ के सिरहाने रख लिया,
ख्वाहिशों का वर्क़ मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
आज मई अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उस से
कहने जाते तो हैं लेकिन देखिए क्या कहते हैं
तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में लाखों बातें हैं,
ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखता हैं !!
आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बांध कर जाता हूँ मैं
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब भला लावेंगे क्या
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही कि ये माजरा क्या है !!
जान मैं तुम पर निसार करता हूँ,
मैं नहीं जानता कि दुआ क्या है !!
Love Sonnets of Ghalib
आईना देख कर अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को अपने दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
पद गए अगर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाएं तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो
आए है बे-कसी-ए-मोहब्बत पे रोना ‘ग़ालिब’
किस के घर पे जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद
हसद से जिगर अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
कि चश्म-ए-तंग शायद कसरत-ए-नज़्ज़ारा से वो हो
संक्षेप में
दोस्तों, आज हमने इस आर्टिकल (Mirza Ghalib Shayari in Hindi in 2 Lines) के ज़रिये आपके सामने कुछ मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर शायरी प्रस्तुत करीं, जिनको आप कॉपी पेस्ट करके अलग अलग सोशल नेटवर्किं साइट्स पर आसानी से शेयर कर सकते हैं. ये शायरी हमारे एक्सपर्ट्स द्वारा छांटी हुई कुछ सबसे बेहतरीन शायरी हैं. इसके अलावा, इस पोस्ट के ज़रिये हमने आपको मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवन परिचय भी दिया.
हम उम्मीद करते हैं की आपको हमारा लिखा हुआ ये पोस्ट (Mirza Ghalib Shayari in Hindi in 2 Lines) पसंद आया होगा. यदि यह पोस्ट आपको पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों, फॅमिली मेंबर्स, रिलेटिव्स के साथ भी शेयर करें ताकि वे लोग भी ज़रूरत पड़ने पर अच्छी अच्छी शायरी यहाँ से प्राप्त कर सकें. हमें राय और सुझाव देने के लिए निचे कमेंट बॉक्स का प्रयोग करें और हमें ज़रूर बताएं की आपके जिगरी दोस्त आपके जीवन में कितना महत्व रखते हैं. हम आपके लिए ऐसे ही शानदार पोस्ट हमेशा लाते रहेंगे.