अवलोकन: इस आर्टिकल के ज़रिये हम आपके लिए अल्लमा इक़बाल की मशहूर शायरी (Allama Iqbal shayari) लाएं हैं जिनको आप सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर कर सकते हैं.
Short Biography of Allama Iqbal in Hindi
‘अल्लमा’ इक़बाल का असली नाम मोहम्मद इक़बाल था और इनका जन्म 9 नवंबर 1877 के अविभाजित भारत में हुआ था. इनकी शायरी और कविताओं को कुछ सर्वश्रेष्ठ शायरियों में गिना जाता है. ये एक कवि होने के साथ साथ एक दार्शनिक, और राजनेता भी थे. अल्लमा इक़बाल को ‘स्प्रिटुअल फादर ऑफ़ पाकिस्तान’ कहा जाता है और इनके चर्चे पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि भारत, बांग्लादेश, भूटान और ईरान में भी हैं.
इक़बाल ने अपने जीवनकाल में बहुत सी प्रसिद्ध किताबें लिखीं जिनमे ज़्यादातर इन्होने कवितायेँ लिखीं हैं. ये कविताओं में उर्दू, हिंदी और पारसी भाषा का प्रयोग करते थे. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था की इन्हे केवल ये तीन भाषा ही आती थे. इक़बाल अंग्रेजी भाषा में भी निपुण थे. 1922 में मोहम्मद इक़बाल को किंग जॉर्ज 5 ने ‘नाइट बैचलर’ का सम्मान दिया.
दक्षिणी एशिया में इक़बाल को शाइर-ए-मशरिक़ भी कहा जाता था. इसके अलावा इनको और भी कई उपाधियों से नवाज़ा गया था जैसे की, मुफक्किर-ए-पाकिस्तान, मुसवार-ए-पाकिस्तान, हाकिम-उल-उम्मत. मोहम्मत इक़बाल को पाकिस्तान का राष्ट्रीय कवी भी कहा जाता है.
नीचे हम आपके लिए अल्लमा इक़बाल की कुछ मशहूर शायरी लाएं हैं जिनको आप आसानी से किसी भी प्लेटफार्म पर शेयर कर सकते हैं.
Allama Iqbal Shayari in Hindi
फूलों की पत्तियों से कट सकता है हीरे का जिगर
मर्दे नादान पर कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर मुकद्दर से पहले
खुदा भी बंदे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला कर रख दो
देख कैसी क़यामत सी बरसी हुई है आशियानों पर इक़बाल
जो खून से तामीर हुए थे , पानी से बह गए
हया नहीं है दुनिया की आँख में बाक़ी
अल्लाह करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
Heart touching shayari by Allama Iqbal
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे आखिर किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है और सुल्तानी भी अय्यारी
अमल करने से ज़िन्दगी बनती है , जन्नत भी और जहनुम भी
यह कहा की अपनी फितरत में न नूरी है और न नारी है
जफा जो मोहब्बत में होती है वह जफा ही नहीं,
सितम न हो तो इश्क़ में कुछ मजा ही नहीं
अपने दिल में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन लेकिन अपना तो बन
पानी पानी कर गयी मुझको उसकी वो बातें
तू झुका जो गैरों के आगे न तन तेरा और न मन तेरा
ढूंढता रहता हूं ऐ ‘इकबाल’ मैं अपने आप को,
आप ही गोया मुसाफिर और आप ही मंजिल हूं मैं।
Best Shayari by Allama Iqbal
इक़रार -ऐ-इश्क़ ऐहदे-ऐ.वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं “इक़बाल”
हर शख्स खुदी की मस्ती में बस अपने लिए ही जीता है
दिल की बस्ती एकअजीब बस्ती है,
लूटने वाले के लिए तरसती है।
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राहगीर को
खटक सी है जो कभी सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई भी किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा अगर तो कोई चारा नहीं
मोहब्बत क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी
यह बता किस से इश्क़ की जज़ा मांगेगा
सजदा ख़ालिक़ को भी और इबलीस से याराना भी
हसर में किस से अक़ीदत का तू सिला मांगेगा
मिटा कर रख दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए
कि दाना खाक में मिलकर ही, गुले-गुलजार होता है
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
खुदा के शेरों को आती नहीं रूबाही
सौदागरी नहीं , यह इबादत अल्लाह की है
ओ बेखबर ! जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
मुझे रोकेगा तू ऐ नाखुदा क्या मुझे गर्क होने से
कि जिसे डूबना हो, डूब जाते हैं वो सफीनों में
किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी हो कितने
फ़क़ीह ओ सूफ़ी ओ शाइर की ना-ख़ुश-अंदेशी
Mohammad Iqbal urdu shayari
उम्र भर तेरा इश्क़ मेरी खिदमत रही
मैं तेरी खिदमत के क़ाबिल जब हुआ तो तू ही चल बसी
कई साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बहुत मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा
कभी हम से और कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो एक हरजाई है
किसी की याद ने ज़ख्मो से भर दिया मेरा सीना
हर एक सांस पर शक है के शायद आखरी होगी
अल्लाह के बन्दे तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे
मैं उसका बन्दा बनूंगा जिसको अल्लाह के बन्दों से प्यार होगा
और भी कर देता है ज़ख्मों में इज़ाफ़ा
तेरे होते हुए गैरों का मुझे दिलासा देना
Allama Iqbal ki mashhoor shayari
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
नियाज़-मंद न क्यों आजिज़ी पर नाज़ करे
चाँद-सितारों से आगे जहां और भी हैं
अभी मोहब्बत के इम्तिहां और भी हैं
बड़े इसरार पोशीदा हैं इस तन्हाई पसंदी में .
ये न समझो कि दीवाने जहनदीदा नहीं होते .
ताजुब क्या अगर इक़बाल इस दुनिया तुझ से नाखुश है
सारे लोग दुनिया में पसंददीदा नहीं होते .
सख्तियां करता हूं दिल पे गैरों से गाफिल हूं मैं
हाय क्या अच्छी कही जालिम हूं, इक जाहिल हूं मैं
दिमाग को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
मोहब्बत पर आमाल की बुनियाद रख
तेरी मोहब्बत का इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख मैं क्या चाहता हूँ
भरी बज़्म में मैंने राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ , मैं सज़ा चाहता हूँ
साकी के इश्क़ में दिल साफ हुआ इतना
जब सर को झुकाता हूं तो शीशा नजर आता है
तुझे किताबों से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है लेकिन साहिब-ए-किताब नहीं
अब ज़माना आया है बे–हिजबी का , आम दीदार-ऐ-यार होगा ;
सकूत था पर्देदार जिसका, वो राज़ तो अब आशकार होगा .
ये मुमकिन है कि तू जिसको समझता है बहारां
औरों की नज़रों में वो मौसम हो खिजां का
Mohammad iqbal ki kavitayein
ऋषियों के फ़ाक़ों से टूटा न बरहमन का तिलिस्म
असा न हो तो कलीमी भी है कार-ए-बे-बुनियाद
इस ज़माने की ज़ुल्मत में हर कल्बे परेशान को
वो दाग़े इश्क़ दे जो चाँद को शर्मा दे
तेरी ख्वाहिश से कज़ा तो बदल नहीं सकती
मगर है इस से यह मुमकिन की तू ही बदल जाये
तेरी दुआ है की हो तेरी हर आरज़ू पूरी
मेरी दुआ है कि तेरी आरज़ू बदल जाये
तू है एक मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-कनार कर या फिर मुझे बे-कनार कर
हंसी आती है अब मुझे हसरते इंसान पर
गुनाह करता है खुद लेकिन लानत भेजता है सैतान पर
आज फिर तेरी यादें मुश्किल बना देगी
सोने से पहले ही मुझे रुला देगी
आँख लग गई हो भले से तो डर है
लगता है कोई आवाज़ फिर मुझे जगा देगी
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से अंत अच्छा
जिस भी रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही
किसी के मोहब्बत के हम-ओ-ख्याल थे हम भी कभी
गुजरे हुए ज़माने में बहुत बा-कमाल थे हम भी कभी
तू ने तो क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो इक राज़ था सीना-ए-काएनात में
उमीद-ए-हूर ने बहुत कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हसरत देखने में बहुत सीधे-सादे भोले-भाले हैं
उसकी फितरत परिंदों जैसी थी मेरा मिज़ाज दरख़्तों जैसा
उसको उड़ जाना था और मुझे कायम ही रहना था
Mohammad Iqbal ki kavita
तू क़ादिर ओ आदिल है लेकिन तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत है बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात
‘अत्तार’ हो ‘रूमी’ हो ‘राज़ी’ हो और ‘ग़ज़ाली’ हो
कुछ हाथ में नहीं आता बे-आह-ए-सहर-गाही
मेरे जैसा कोई शख्स नादान भी न हो
करे जो इश्क़ कहता है और नुकसान भी न हो
तेरे सामने आसमान अभी और भी हैं
हम ने आगोश- ऐ-मोहब्बत में सुलाये केवल पत्थर ..
नज़र आती है उन को अपनी मंज़िल अब आसमानों में
न तुम आये तो यूं जश्न -ऐ -बहाराँ कर लिया मैने ..
तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी
Motivational shayari by Allama Iqbal
ये चीज़ वो है जो देखी है कहीं कहीं मैंने ..
महव-ए-हैरत हूँ कि ये दुनिया क्या से क्या हो जाएगी
उन का हर ऐब भी इस ज़माने को हुनर लगता है …
किस को ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक
न गिला है यारों का , न शिकायत -ऐ -ज़माना
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मेरा थोड़ी इंतिज़ार कर
मुझको बता तो सही और काफ़िरी क्या है
Allama Iqbal Inqabi shayari
इक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही
लेकिन नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
भला कहाँ से आए सदा ला इलाह इल-लल्लाह
लेकिन कभी कभी तो इसे तन्हा भी छोड़ दे
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ निगाह शिकार कर
फिर इस में अजब भला क्या कि तू बेबाक नहीं है
ये वो जन्नत है जिस में कोई हूर नहीं
क्या लुत्फ़ भला अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं सारी ज़ंजीरें
न हो नज़र में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
शायद कि उतर जाए तेरे दिल में मेरी बातें
ज़रा तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना के फूँक डाले हैं
Mohammad Iqbal ‘Allama’ ki kavitayein
है देखने की चीज़ इसे तू बार बार देख
चराग़-ए-राह है लेकिन मंज़िल नहीं है
ज़रा नम हो जाये तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी
गलती किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
तब खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
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ये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स है न आशियाना
तू भी अभी ना-तमाम और मैं भी अभी ना-तमाम
Inspirational shayari by Allama Iqbal
दूर हो दीं सियासत से तो रह जाती है चंगेज़ी
मज़ा तो तब है जब गिरतों को थाम ले साक़ी
ये दीवाना कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
शिकार-ए-मुर्दा सज़ा-वार-ए-शाहबाज़ नहीं है
यही है रख़्त-ए-मंज़िल मीर-ए-कारवाँ के लिए
वर्ना मैं और उड़ के आता एक तिनके के लिए
कि जानता हूँ की मआल-ए-सिकंदरी क्या है
वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ख़ाना-ए-जिगर के मकीनों में
Mohammad Iqbal ki kavita
ताही ज़िंदगी से नहीं हैं ये फिज़ाएँ
यहाँ सैंकड़ों कारवाँ अभी और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो किया गिला
मक़ामात-ऐ-आह-ओ-फ़िगन अहा और भी हैं
तू शाहीन है , और परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने अभी आसमान और भी हैं
इसे रोज़-ओ-शब में उलझ कर मत रह जा
कह तेरे ज़मान-ओ-मकाँ अभी और भी हैं
गए दिन के अकेला था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दान अभी और भी हैं
संक्षेप में
दोस्तों, आज हमने इस आर्टिकल (Allama Iqbal Shayari in Hindi – 90+ Shayari for Whatsapp) के ज़रिये आपके सामने अल्लामा इक़बाल की मशहूर शायरी प्रस्तुत करीं, जिनको आप कॉपी पेस्ट करके अलग अलग सोशल नेटवर्किं साइट्स पर आसानी से शेयर कर सकते हैं. ये शायरी हमारे एक्सपर्ट्स द्वारा छांटी हुई कुछ सबसे सुन्दर शायरी हैं. इसके अलावा, इस पोस्ट के ज़रिये हमने आपको अल्लामा इक़बाल का जीवन परिचय.
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